इस ब्लॉग में एक व्यक्ति की गहन भावनात्मक यात्रा को दर्शाया गया है, जो सभी बंधनों से मुक्त होने की चाह रखता है। यह कविता, जो हिंदी में लिखी गई है, उन आंतरिक संघर्षों को उजागर करती है, जिसमें हर उम्मीद ठगी हुई, हर ख्वाब टूटे हुए, और हर मुस्कान झूठी लगने लगती है। जब वह प्रकृति की गोद में शांति की तलाश में जाने की सोचता है, तो उसे एहसास होता है कि जब मन भीतर से बंजर हो, तो बाहरी सौंदर्य भी सुकून नहीं दे सकता। यह कविता सच्चे प्रेम की भावना को खूबसूरती से दर्शाती है, जो मौन और एकांत में पनपता है, और दुनिया की उम्मीदों और बंधनों से मुक्त होता है। ब्लॉग का सार यह है कि प्रेम की पवित्रता में, इंसान को पूरी तरह से खाली हो जाना चाहिए, ताकि प्रेम अपनी सबसे सच्ची रूप में बह सके।
कभी कभी हर चीज से
इंसान मुक्त होना चाहता है
हर चीज बंधन लगती है
हर उम्मीद ठगी ठगी सी लगती है
हर ख्वाब टूटे टूटे से लगते है
हर मुस्कुराहट झूठी झूठी सी लगती है
हर साथ खाली खाली सा लगता है
तब लगता है कही दूर एकांत में
किसी पहाड़ो में जाकर उसी पहाड़ को
सुकून का कंधा समझ कर बस वही बसर जाए,
और प्रकृति के बीच ही रहकर
अपने आपको नवजीवन दिया जाए
लेकिन जब भीतर एक बंजरपन हो
तो प्रकृति के बीच क्या मन लगेगा???
वो पहाड़ भी उसे कठोर लगेंगे जो वर्षो से
स्थिर खडे है जिसने कभी प्रेम में झुकना नहीं सीखा
उसके सामने नदियां जा रही है कल कल करती
लेकिन उसका अडिग होना उसकी प्रकृति बन चुका है
वो नदियाँ भी उसे स्वार्थी लगेगी जो अपनी
धुन में बहती चली जा रही है बिना किसी
परवाह के अपना रास्ता बनाती हुई किसी
सागर में मिल जाने की तैयारी कर लेती है
जिसने प्रेम में रुकना नहीं सीखा और
उसका अपनी ही धुन में रहकर बहते जाना
और अस्थिर होना उसकी प्रकृति बन चुका है
वो खिलखिलाती हरियाली भी उसे झूठी हंसी ओढ़े लगेगी
क्यूंकि वो मुस्कुराहट हवा के झोंको के आने तक की है
उसके जाते ही वो खिलखिलाहट नीरस होकर ठहर जायेगी
उसका खिलखिलाना और मायूस होना उसकी मनमानी है
हवा पर निर्भर रहकर ही मुस्कुराना उसकी प्रकृति बन चुका है
वो चाँद और सूरज भी उस समय बेमानी से लगेंगे
जो बदलते मौसम के मिजाज से अपने आप
को कभी छिपा देते है तो कभी दिखा देते है
जरा सा मिजाज क्या बदला हवा का
बादलो का सहारा लेकर खुद को ओढ़ लेते है
जिसने प्रेम में टिकना नहीं सीखा
ये लुका छिपी की अदाए दिखाना उनकी प्रकृति बन चुका है
इन सबके बीच उस इंसान ने ये समझ लिया
की उसके अंदर का बंजर होना कितना सही है
क्यूंकि किसी से प्रेम करना है तो बेहिसाब करो
लेकिन मोह को त्याग कर....
मोह उम्मीदें देती है और उम्मीद हमेशा ठगती है..
प्रेम मौन रहता है और एकांत ही उसका घर है
सबसे विरक्त होकर स्वयं की स्वयं के साथ की यात्रा...!
जी हाँ बंजर हो जाना... खाली हो जाना पूरी तरह से
अगर आप प्रेम में हो तो...!
क्यूंकि प्रेम मे पड़े उस इंसान के लिए सब
खाली हो जाना चाहिए जहाँ उसका प्रेम
सूफियाना हो कर नृत्य कर सके...!
निष्कर्ष: प्रेम में बंजर हो जाना
प्रेम में अगर कोई बंजर हो जाता है, तो वो सही मायने में खाली हो जाता है। प्रेम में पड़े उस इंसान के लिए सब कुछ खाली हो जाना चाहिए, ताकि उसका प्रेम सूफियाना होकर नृत्य कर सके। बंजर हो जाना, पूरी तरह से खाली हो जाना, यही सच्चे प्रेम की पहचान है, जहाँ इंसान और उसका प्रेम एक हो जाते हैं।