गुप्त नवरात्रि और दस महाविद्या परिचय



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गुप्त नवरात्रि 


6th जुलाई - 15th जुलाई


गुप्त नवरात्रि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मैं आपको देने जा रहा हु। इसमें मैं गुप्त नवरात्री का महत्व एवं देवी के किन स्वरूपों की पूजा की जाती है उसके बारे में विवेचना करूँगा। 


गुप्त नवरात्री शारदीय और चैत्र नवरात्रो से अलग होती है। जहा आप शारदीय और चैत्र नवरात्रो में माँ कुष्मांडा, माँ कालरात्रि, माँ सिद्धिदात्री आदि आदि स्वरूपों की पूजा करते है उसी तरह गुप्त नवरात्रो में माता के १० स्वरूपों की एक साथ या उन १० स्वरूपों में से किसी एक स्वरुप की विशेष साधना या आराधना की जाती है।  


ये १० स्वरुप अपने आप में रहस्यात्मक है क्युकी इन स्वरूपों का वर्णन रुद्रयामल ग्रन्थ के अलावा और कही नहीं मिला। रुद्रयामल ग्रन्थ में भगवान् शिव प्रथम बार यह रहस्योद्घाटन कर रहे है और इन स्वरूपों के सामने आते ही तंत्र जगत में एक नई क्रान्ति का प्रादुर्भाव हुआ ।  


ये देवी माँ के १० स्वरुप थे जिन्हे १० महाविद्या के नाम से जाना गया। और ये भगवन शिव से अंगीकार हुई। समस्त जगत एवं ब्रह्माण्ड को ये १० पराशक्ति महाविद्या के रूप में नियंत्रित करती है।  


मुख्यतः इन्ही महाविद्याओ की साधना गुप्त नवरात्रो में की जाती है। लेकिन इन स्वरुप की साधना बिना गुरु के करने पर साधक विनाश को प्राप्त हो जाता है क्युकी किसी भी महाविद्या की साधना सीधे ही नहीं की जाती। सीधे साधना करने पर इन महाविद्याओ की सहचरी शक्तियां साधक की परीक्षा लेती है और बिना गुरु के निश्चित तौर पर वह उस परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो पाता जिसके परिणाम स्वरुप वह मानसिक विक्षिप्त या मृत्यु का वरण करने पर मजबूर हो जाता है इसलिए इन शक्तियों की साधना बिना गुरु के नहीं की जाती। 


जब तक आपके पुण्य कर्म जागृत न हुए हो और विधि जब तक स्वयं आपको साधक न बनाना चाहती हो तब तक इस पथ में चलना असंभव है। महान कर्मो से सिद्ध गुरु का जीवन में आगमन होता है और वही फिर आपको हाथ पकड़ कर साधना मार्ग में चलना सीखा देते है।आइये जानते है की १० महाविद्याओ के नाम , इनकी महिमा और इनके मंत्र जो परम कल्याणकारी माने गए है।  



महाकाली - ये प्रथम महाविद्या है और ब्रह्माण्ड के समस्त तामसिक तत्वों पर आधिपत्य इन्ही का माना जाता है। समस्त भूत, प्रेत, पिसाच, ब्रह्मराक्षस, शाकिनी, डाकिनी, जिन्न या अन्य कई प्रकार की आत्माये जो इस चराचर जगत में विद्यमान है वे इन्ही तत्त्व से संचालित होती है। महाभारत युद्ध की विनाश लीला में महाकाली ही संहार कर्ता थी जो भगवान कृष्ण की मूल शक्तियों में से एक मानी गयी है।  




दक्षिण दिशा पर देवी का पूर्ण आधिपत्य स्थापित होता है। वाम मार्ग हो या दक्षिण मार्ग या फिर कौल मार्ग सभी में विभिन्न प्रकार से महाकालकी साधना की जाती है जो साधक को अत्यंत शक्तिशाली बना देती है। देवी की कृपा और देवी की साधना में सफल होने पर साधक समस्त भूत प्रेत पिसाच या अन्य इतर योनिओ पर आधिपत्य स्थापित कर लेता है और जहा जहा वह जाता है ये इतर योनिया उसके अनुकूल होकर कार्य करती है। 


महाकाल का साधक पूर्ण रूप से निरोगी और निर्भीक हो जाता है और अभय होकर समस्त संसार में विचरण करता है। और समस्त प्रकार के भोगो का प्राप्त करता है।  


इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :- 


ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥


नोट - बिना गुरु के खाली एक माला नित्य जाप करे। जीवन में पवित्रता का पालन करे। इसके अलावा आप मुझे कुंडली दिखा सकते है कुंडली देखने के बाद आपको बताया जाएगा की कोनसी महाविद्या का मंत्र आपके लिए उपयुक्त है।  




माँ तारा - भगवान् श्री राम के दाएं हाथ की मूल शक्ति माँ तारा है और तंत्र के विभिन्न मार्गो में माँ तारा की साधना की जाती है। माँ तारा की साधना तिब्बत में भी विशेष रूप से प्रचलित है जहा माँ के विशिष्ट स्वरुप श्वेत तारा की साधना की जाती है।  



इनकी साधना करने वाला साधक लक्ष्मी तत्त्व पर पूर्ण नियंत्रण कर लेता है। उसके जीवन से जन्म जन्मांतर की दरिद्रता समाप्त हो जाती है। दुनिया में जितने में शमशान है उन सभी की शक्तिया माँ तारा के नियंत्रण में होती है अतएव यह शक्ति अपने आप में परम उग्र मानी जाती है और इनकी साधना गुरु के निर्देशन में करने पर साधक आर्थिक रूप से बहुत अनुकूल हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।  


इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :- 


ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्


नोट - बिना गुरु के खाली एक माला नित्य जाप करे। जीवन में पवित्रता का पालन करे। इसके अलावा आप मुझे कुंडली दिखा सकते है कुंडली देखने के बाद आपको बताया जाएगा की कोनसी महाविद्या का मंत्र आपके लिए उपयुक्त है 



त्रिपुर सुंदरी - त्रिपुर सुंदरी - त्रिपुर का मतलब होता है तीनो लोक अर्थात माँ त्रिपुर सुंदरी तीनो लोको में सबसे सुन्दर और आकर्षक मानी जाती है। इन देवी के सामान तीनो लोको में किसी की तुलना करना मूर्खता होगी। 



 


इनकी साधना करने वाला साधक आकर्षण तत्त्व पर पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर लेता है। वह इतना आकर्षक हो जाता है की समस्त संसार में ऐसा कोई नहीं जो उसके आकर्षण के जादू से अछूता रह जाए। ऐसा साधक समस्त प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति करता हुआ अंत में मोक्ष की प्राप्त करता है। माँ त्रिपुर सुंदरी अपने साधक के समस्त पापों का नाश कर देती है।  


इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :- 


ऊं ह्रीं कं ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।


नोट - बिना गुरु के खाली एक माला नित्य जाप करे। जीवन में पवित्रता का पालन करे। इसके अलावा आप मुझे कुंडली दिखा सकते है कुंडली देखने के बाद आपको बताया जाएगा की कोनसी महाविद्या का मंत्र आपके लिए उपयुक्त है



माँ भुवनेश्वरी - चौदह भुवनो पर माँ भुवनेश्वरी का आधिपत्य है और इनकी की शक्ति से समस्त भुवन विद्यमान है। माँ भुवनेश्वरी का साधक दरिद्र रह ही नहीं सकता। माँ भुवनेश्वरी की साधना सफल होने पर साधक अचल संपत्ति का स्वामी हो जाता है। वह राजयोग को प्राप्त करता है। जहा जहा माँ भुवनेश्वरी का साधक जाता है वह के वास्तु दोष स्वतः ही समाप्त हो जाते है।  



माँ भुवनेश्वरी की साधना बहुत ही कम उपलब्ध है। फिर भी अगर कोई ऐसा गुरु आपको मिल जाए जिन्होंने माँ भुवनेश्वरी की साधना सफ़लतपूर्वक संपन्न करि हो तो निश्चय ही आपका सौभाग्य होगा।  इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :- 


ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं॥


नोट - बिना गुरु के खाली एक माला नित्य जाप करे। जीवन में पवित्रता का पालन करे। इसके अलावा आप मुझे कुंडली दिखा सकते है कुंडली देखने के बाद आपको बताया जाएगा की कोनसी महाविद्या का मंत्र आपके लिए उपयुक्त है



माँ छिन्नमस्ता - माँ छिन्नमस्ता का प्रादुर्भाव माँ पार्वती से ही हुआ है। स्वयं के रक्त से अपनी सहचरियों की प्यास बुझाते हुए दर्शाया गया माता का स्वरुप अभय प्रदान करने वाला है। इनकी साधना करने वाला साधक दैहिक बाधाओं से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। न उसे भूख लगती है न प्यास लगती है। साधक मीलो दूर बिना थकन के पैदल चल सकता है और वापस लौट कर भी आ सकता है।  



इनकी साधना पूर्ण से सफल होने पर साधक ६४ योगिनियो की पूर्ण कृपा प्राप्त कर लेता है। उसके बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति उसे हो जाती है और अंत में वह मातृ अंक को प्राप्त कर लेता है।  


इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :- 


श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा।



नोट - बिना गुरु के इस मंत्र का जाप कदापि ना करे। इसके अलावा आप मुझे कुंडली दिखा सकते है कुंडली देखने के बाद आपको बताया जाएगा की कोनसी महाविद्या का मंत्र आपके लिए उपयुक्त है। 



त्रिपुरभैरवी - समस्त संसार का तंत्र जिनके अधीन है ऐसी त्रिपुरभैरवी माँ का साधक समस्त गुप्त विद्याओं को जान लेता है। महाभैरवी साधना पूर्ण सफल होने पर तंत्र के मूल तत्त्व साधक में समावेश कर जाता है।  


ऐसे व्यक्ति पर संसार की कोई तंत्र शक्ति कार्य नहीं करती। वह समस्त तंत्र और मंत्र साधनाओ में सफलता प्राप्त कर लेता है। उसके जन्म जन्मांतर के पाप काट जाते है। वह निर्भय होकर विचरण करता है। वह अपने एवं अन्य लोगो का कल्याण करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। महा भैरवी की साधना लगभग लोप प्राय है और गुरु मुख से ही दी जाती है। लेकिन ऐसा गुरु मिला भी सौभाग्य की बात है।


इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :- 


 ह सें ह स क रीं ह सें ॥


नोट - बिना गुरु के इस मंत्र का जाप कदापि ना करे। इसके अलावा आप मुझे कुंडली दिखा सकते है कुंडली देखने के बाद आपको बताया जाएगा की कोनसी महाविद्या का मंत्र आपके लिए उपयुक्त है।  



माँ धूमावती - सघन काली ऊर्जाओं पर माँ धूमावती का आधिपत्य स्थापित होता है। माँ धूमावती की साधना बड़े से बड़े तंत्र को प्रभावहीन कर देती है। इनकी साधना समस्त इतर योनियों पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए की जाती है। धूमावती माँ का मूल स्वरुप के अनुसार इनकी साधना घर में नहीं करनी चाहिए। बिना गुरु के साधना करने पर यह ऊर्जा साधक को दरिद्रता , बीमारी और अंत में पूर्ण विनाश की और धकेल सकती है। जो माँ धूमावती की साधना में सफल हो जाता है वह अपराजित हो जाता है। संसार का बड़े से बड़ा तांत्रिक उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता।किसी भी साधना को करने से पहले गुरु उस साधना से जुडी शक्ति का मर्म समझाते है उसी की बाद वह फलदायी होती है।  


इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :-


धूं धूं धूमावती ठः ठः ।।



नोट - बिना गुरु के इस मंत्र का जाप कदापि ना करे। इसके अलावा आप मुझे कुंडली दिखा सकते है कुंडली देखने के बाद आपको बताया जाएगा की कोनसी महाविद्या का मंत्र आपके लिए उपयुक्त है।  




माँ बगलामुखी - जिन्हें पितांबरा माँ के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में दस महाविद्याओं में से एक हैं। उन्हें शत्रुओं को पराजित करने और कानूनी मामलों में जीत दिलाने के लिए पूजा जाता है।


माँ बगलामुखी की उत्पत्ति के बारे में कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रमुख कथा के अनुसार, सतयुग में जब प्रलय के समय अत्यधिक तूफान और तबाही हो रही थी, तो भगवान विष्णु ने माँ बगलामुखी का आवाहन किया। माँ बगलामुखी ने प्रकट होकर प्रलय को रोक दिया और संसार को बचाया।



माँ बगलामुखी को पीले वस्त्र पहने हुए दर्शाया जाता है और उनके हाथ में एक गदा और शत्रु की जीभ पकड़े हुए दिखाया जाता है। उनका यह रूप शत्रुओं को पराजित करने और उन्हें वश में करने की शक्ति का प्रतीक है।


माँ बगलामुखी की पूजा विशेष रूप से उन लोगों द्वारा की जाती है जो कानूनी मामलों, शत्रुओं से मुक्ति और सुरक्षा की कामना करते हैं। बगलामुखी जयन्ती और नवरात्रि के अवसर पर माँ बगलामुखी की विशेष पूजा की जाती है। माँ बगलामुखी के मंत्रों का जाप भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।


भारत में माँ बगलामुखी के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें से प्रमुख मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित पितांबरा पीठ है। यहाँ प्रतिवर्ष लाखों भक्त माँ के दर्शन और पूजा के लिए आते हैं।


माँ बगलामुखी की आराधना से भक्तों को शत्रुओं से मुक्ति, कानूनी मामलों में सफलता और समस्त प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्राप्त होती है। माँ बगलामुखी का आशीर्वाद पाने के लिए सच्चे मन और श्रद्धा से उनकी पूजा की जाती है।


इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :-


ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।




माँ मातंगी - महाविद्या माँ मातंगी हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवी हैं, जिनका महत्व तंत्र शास्त्र में विशेष रूप से उच्च माना जाता है। वह दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं और उनकी साधना व उपासना का विशेष महत्व है। यहां उनकी कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं | मातंगी का नाम संस्कृत में 'मातंग' शब्द से लिया गया है, जो 'वन्य' या 'जंगली' को दर्शाता है। वे ज्ञान, विद्या और कला की देवी हैं, जिन्हें तंत्रिक साहित्य में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।




वे साधारणतः सुवर्ण रंग की, विशालकाय और चार भुजाओं वाली होती हैं। उनके पास एक अक्षमाला, त्रिशूल, कपाल और खड्ग जैसे आध्यात्मिक औजार होते हैं। मातंगी उपासना में ज्ञान, बुद्धि और वाणी के प्राप्ति का साधक को मार्ग प्रदर्शन करती हैं। उनकी साधना से विद्या, कला और संस्कृति में समृद्धि होती है। तांत्रिक साहित्य में मातंगी को शक्ति का प्रतीक माना गया है, जिनके उपासना से मनुष्य को आध्यात्मिक एवं भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।


विद्या, कला और बुद्धि के स्त्रोत के रूप में मातंगी का महत्व अत्यंत उच्च है, और उन्हें समझने के लिए तंत्र शास्त्र की अच्छी जानकारी और उनकी उपासना की श्रद्धा आवश्यक होती है।


इस प्रकार, माँ मातंगी तंत्रिक देवी के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और उनकी उपासना से साधक जीवन में ज्ञान और समृद्धि की प्राप्ति कर सकता है।



इनका मूल मंत्र इस प्रकार है :-


श्रीम ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा



माँ कमला - इन्हे कमलात्मिका और त्रिपुरा भी कहा गया है। यह खिले कमल पे विराजमान है। इनकी साधना में सफल में सफल होने पर साधक की जन्म जन्मांतर की दरिद्रता भस्मीभूत हो जाती है। उसकी आने वाली पीडियों में भी कोई दरिद्र नहीं होता। ऐसा व्यक्ति कई कई जन्म आर्थिक सुखों का उपभोग करता हुआ अंत में मोक्ष की और अग्रसर हो जाता है।  



माँ कमला के भैरव सदाशिव है और माँ पार्वती का ही अन्तः स्वरुप माँ कमला है।  


उनकी उपासना का विशेष महत्व है। यहां माँ कमला का महत्वपूर्ण मंत्र दिया जा रहा है:


॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्सौ: जगत्प्रसूत्यै नम: ॥

  





 




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